हैं बदली हुई सी राहें, और जुदा सी हैं मंज़िले..
बदहवास सी सूरतें, और भटके हुए से काफिले..।
क्या आजकल ये ज़मीं वही है, और आसमां वही..
क्या दिन रात के चल रहे हैं, वही पुराने सिलसिले..।
वो कब तक मेरी वफ़ा का, इम्तिहान लेंगे दोस्तो..
बेकुसूर था हर दफ़ा, मगर मिट न सके फ़ासिले..।
और क्या हाल है, पूछना भर रहा गया है अब तो..
इस मसरूफ़ ज़माने में, कौन सुने शिकवे–गिले..।
बागबां को है फ़िक्र कि, चमन में ना हो वीराना..
इन बहारों को क्या कि, कोई गुल खिले ना खिले..
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




