घर तुम्हारा घर के लोग तुम्हारे
कोने में परी इल्ज़ामों की वो पोटली हमारी
आँगन, दरवाज़ा और क्यारी तुम्हारी
छत के झूले पर ठहरी यादें हमारी
फूलों, फ़लों और मेंहदी के शज़र तुम्हारे
पर उसमें बसी खु़शबू हमारी
हर ख़्वाहिशें और ख़ुशियाँ तुम्हारी
निर्निमेष ये सब देखती निगाहें हमारी
जो भी है अब सब तुम्हारा है
अच्छा बँटवारा है जो मैंने सहर्ष स्वीकारा है