है हकीकत या फिर दावा कोई नहीं जानता
कब क्या किसका इरादा कोई नहीं जानता
लोग अपने आप में सिमटे रहेंगे उम्र भर यहां
किसके मन में क्या चला कोई नहीं जानता
अपने अपने दर्द हैं तो अपनी अपनी हैं खुशी
किस किस को कैसे छला कोई नहीं जानता
बंदिशे हैं बेशुमार पर आदमी तो रुकता नहीं
कौन कितने कब पग चला कोई नहीं जानता
युगयुगों से रीत है बस ये कहके सब ढोते रहे
दास हमको क्या है मिला कोई नहीं जानता।