मुझे प्रेम का मीठा भ्रम नहीं,
सम्मान का झूठा भ्रम नहीं।
मैं चाहती हूँ तुमसे कुछ और,
सिर्फ़ मानवता का संजीवनी स्रोत।
ना देवी बनाकर पूजो मुझे,
ना पायल बाँधकर बाँधो मुझे।
ना चरणों में बैठने दो,
ना सिंहासन पर बैठाओ मुझे।
बस उतना ही देखो,
जितना तुम इंसान को देखते हो।
मुझे प्रेम की सीमाएँ नहीं,
मुझे बंधनों की दीवारें नहीं।
मैं चाहती हूँ वो हवा,
जो साँसों में स्वतंत्रता भर दे।
प्रेम अगर सौदा है तो मत करो,
सम्मान अगर एहसान है तो मत दो।
मुझे वो दृष्टि चाहिए,
जो मन से मन को देख सके।
जो मेरी हँसी को मेरी ख़ुशी समझे,
न कि किसी चालाकी का जाल।
जो मेरी चुप्पी को बोझ न माने,
न कि किसी साज़िश का हाल।
तुम मुझे इंसान की तरह देखो,
न कम, न ज़्यादा।
मैं प्रेम से बंधूँ, मगर गुलाम न बनूँ,
मैं सम्मान से ऊँची उठूँ, मगर पूजनीय न बनूँ।
बस जी सकूँ इंसान बनकर,
बस देख सकूँ एक इंसान तुममें।
- शारदा

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




