जंगल में मोर नाचा किसने देखा
ना मैंने देखा ने तूने देखा
चोर मचाये शोर कि उसने देखा
अंधे के हाथ बटेर लगी
कुछ बांट रहे कुछ चाट रहें
चोर चोर मौसेरे भाई
ना ठौर ना ठिकाने भाई
घाट-घाट का पानी पीकर
साहब हो गये है सारे
जब अपना ही सिक्का खोटा हो
तब ही सब टोटा-टोटा हो
डंका बज गया किसी और का
अब बैठ के माथा पीट रहे
धब्बा लग गया साख पर
छलनी हो गया रे मन
गुदड़ी का है लाल वो
दिन में तारे दिखा देगा
अच्छे-अच्छो को वो
तो पानी पिला देगा
रहना है होशियार अब
आस्तीन के सांपों से
गिरगिट की तरह रंग
बदलनें वाले मेहमानों से
टुकुर-टुकुर देख रहे हैं
गर्दन पर छुरी चलाने वालो को
वैसे दूध का जला छाछ भी
फूंक-फूंक कर पीता है
दाल भी कुछ काली है
पड़ोसी की नजर जाली है
डाल रहे डोरे बार-बार
जितनी है चादर उतने पांव पसार
-अर्पिता पांडेय
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