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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मेरी मंज़िल

बढ़ चली जब मै मंज़िल की ओर
कोई भी साथ नहीं था
हाथो मै मेरे उस वक्त कोई भी हाथ नहीं था।
अकेले मुझे चलना था,गिरना और सभँलना था
मिलने वाली हर मुश्किल से मुझे तो पर अब लड़ना था।
सफर था इतना आसान नहीं
मंज़िल के बारे में था मुझे भी ज्यादा ज्ञान नहीं ।
अंधेरे में भी मैं चलती गई
थी दिल को तसल्ली मंज़िल पर अपनी बढ़ती गई।
मिली मुझे एक दिन रोशनी
बोली,"मंज़िल तेरी करीब है,
थी जिसकी तुझे चाहत अब वो तेरा नसीब हैं।
-राशिका✍️✍️✍️




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

रीना कुमारी प्रजापत said

My story 👌👌🙏🙏heart touching,

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut khoob Mam umda prastuti preranatmak....🙏🙏

Rashika said

रीना कुमारी प्रजापत जी,हर किसी को मंज़िल बहुत ही मुश्किलो के बाद मिलती है। 'मेरी मंज़िल मेरे ,आपके और ना जाने कितने ही लोगो के जीवन पर आधारित है।रचना को महत्व देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद मैम🙏🙏🙏

Rashika said

अशोक कुमार पचौरी जी धन्यवाद, आप जैसे बड़े लेखक के द्वारा की गई समीक्षा से हमे बहुत प्रोत्साहन मिलता है,सर।🙏🙏🙏

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