बढ़ चली जब मै मंज़िल की ओर
कोई भी साथ नहीं था
हाथो मै मेरे उस वक्त कोई भी हाथ नहीं था।
अकेले मुझे चलना था,गिरना और सभँलना था
मिलने वाली हर मुश्किल से मुझे तो पर अब लड़ना था।
सफर था इतना आसान नहीं
मंज़िल के बारे में था मुझे भी ज्यादा ज्ञान नहीं ।
अंधेरे में भी मैं चलती गई
थी दिल को तसल्ली मंज़िल पर अपनी बढ़ती गई।
मिली मुझे एक दिन रोशनी
बोली,"मंज़िल तेरी करीब है,
थी जिसकी तुझे चाहत अब वो तेरा नसीब हैं।
-राशिका✍️✍️✍️