कविता : झूठ ही झूठ....
हर तरफ सोचा
हर तरफ देखा है
ये दुनिया सिर्फ
झूठ में ही टीका है
झूठ हर घर हर
मोहल्ले में चलता है
पत्नी पति से झूठ पति
पत्नी से झूठ बोलता है
अगर पति पत्नी एक दूसरे को
सच्ची सच्ची बातें बताए
हर पति पत्नी का क्षण
भर में ही तलाक हो जाए
झूठ सब के शीर
पर चढ़ गई है
झूठ बोलने की आदत
सभी को पड़ गई है
हम सच बोलने की
वकालत तो करते हैं
मगर सच बोलने में ही
हम सभी डरते हैं
जो आदमी अगर
सच बोलेगा
उसका तो यहां
पोल खुलेगा
इसी चक्कर में न ढंग से
खा रहे न पी रहे
हम सभी झूठ ही
झूठ में तो जी रहे
हम सभी झूठ ही
झूठ में तो जी रहे.......