इस कदर इतिहास के पर्चे बदलते जायेंगे
हर खरे इंसान के चर्चे बदलते जायेंगे।।
अर्थ की कगार पर रिश्ते फिसलते जायेंगे
दिल बदलते जाएंगे चेहरे बदलते जायेंगे।।
रोशनी हो या अंधेरा है किसे परवाह अब
जुर्म की तजवीज के रस्ते बदलते जायेंगे।।
धूप खाकर जी रहे हैं चांदनी की आस में
एक नई तहजीब के नुक्ते बदलते जायेंगे।।
लूटते हैं जिस चमन को उसके पहरे दार ही
उस खुली जागीर के नक़्शे बदलते जाएंगे।।
दास क्यूं बेबस है इतना आजकल का इंसान
वक्त के साथ सच के पुश्ते बदलते जाएंगे ।।