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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

पर्चे बदलते जायेंगे

इस कदर इतिहास के पर्चे बदलते जायेंगे
हर खरे इंसान के चर्चे बदलते जायेंगे।।

अर्थ की कगार पर रिश्ते फिसलते जायेंगे
दिल बदलते जाएंगे चेहरे बदलते जायेंगे।।

रोशनी हो या अंधेरा है किसे परवाह अब
जुर्म की तजवीज के रस्ते बदलते जायेंगे।।

धूप खाकर जी रहे हैं चांदनी की आस में
एक नई तहजीब के नुक्ते बदलते जायेंगे।।

लूटते हैं जिस चमन को उसके पहरे दार ही
उस खुली जागीर के नक़्शे बदलते जाएंगे।।

दास क्यूं बेबस है इतना आजकल का इंसान
वक्त के साथ सच के पुश्ते बदलते जाएंगे ।।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

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मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

धूप खाकर जी रहे हैं, चांदनी की आस में। वाह शिवचरन जी, कितनी गहरी बातें कह दी आपने।
ऐसा ही लगता है कि, वक्त के साथ सच के पुश्ते ही बदल जाएंगे।एक दीर्घकालिक परिणाम की चिंता को दर्शाती ये कविता खूबसूरत भाव पूर्ण, अर्थ पूर्ण है। अति सुन्दर ज्ञानवर्धक लेख वाह।

शिवचरण दास said

आपकी इनायत है मनोज जी. ...हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! बहुत गहरा और सोचने पर मजबूर कर देने वाला शेर है ये।
इतिहास और इंसानियत के उस बदलते रंग को बखूबी बयाँ किया है जो वक्त के साथ सामने आता है।
सच में, "सच के पुश्ते बदलते जाएंगे" ये लाइन तो दिल छू गई। शानदार!

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