डूब कर स्याही में निकलतीं है कलम जब मिरी
अफसाने बयां कर जातीं हैं धड़कनों के मिरी
कोरे कागज पर दिल के अल्फाज़ो की सुंदर रंगोली सजाती हैं कलम ये मिरी
खुशी में तेरी झूम उठती हैं क़लम जब मिरी
गम में तेरे आंसू भी बहाती है कलम ये मिरी
गम ज़माने का टीस बन आता है जब कभी
दर्द ए मरहम बन जातीं हैं तब क़लम ये मिरी
✍️#अर्पिता पांडेय