शून्य से निकलकर, एक दिन शून्य में ही मिल जाना है,
कैसा मान , कैसा अपमान,
कैसा औदा,कैसा प्रतिकार,
कैसा बन्धन,कैसा अधिकार,
गुण और दोषों के बीच एक दिन जीवन थम जाना है,
शून्य से निकलकर,एक दिन शून्य में ही मिल जाना है..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है