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श्वेतक द्वीप का स्वामी हैं
कैलाश का है वो निवासी
जटा जूट धारी हैं त्रिपुरारी
वह मस्तक पर चन्दा सजाये रहता
अंग भस्म लिपटाए रहता
तीन नेत्र हैं जिसके वो त्रिपुंड धारी
भोला भाला है जटा से निकलती गंगा की धारा सर्प बिच्छू आभूषण जिसके
कंठहार है उसका वासुकि
वस्त्र नही पहिरता बाघम्बर
मृगछाला ही उसे भाता
हाथ में त्रिशूल उसके डमरू नित बजाता
बाम अंग में जगदम्बा विराजें
गोद में गणेश कार्तिकेय जी आसन जमाते कपूर से भी गोरा है वो लम्बी लम्बी जटाओं वाला मेरा शंभू प्यारा
भोग मिठाई चाहता नहीं
भांग धतूरा है उसे भाता
कोई कहता शिव उसे
कोई शंकर प्यारा भक्तों ने दिए हैं
अनगिनत नाम अनेक
देवो के देव महादेव हैं
मेरे भोले बाबा मेरे भोले बाबा
जिसको शरण में कोई नहीं लेता
पल में उसके हो जाते हैं देव
खाली हाथ जाता जो द्वार उसके
झोली भर भर कर वो पाता
ऐसे दयावान कि महिमा मैं गाती हूं
कोटि-कोटि नमन कर उनको
नित शीश मैं नवातीं हूं
✍️#अर्पिता पांडेय