मेरी ख्वाहिशों पर, वक्त की कोई मेहरबानी न थी..
इस पर मैं आंसू बहाता, इतनी भी नादानी न थी..।
ज़माने की जुबां पर माना तेरे ही अफसाने थे..
किस्से सब अधूरे थे, मुक्कमल कहानी न थी..।
क्यूं इतना पुख़्ता आशियाना बनाया है इस दफा..
ये तो बता ज़रा कि, ये दुनिया कब फ़ानी न थी..।
ताउम्र उसूलों पर रहा, ज़माने से कुछ लिया नहीं..
ज़माने ने फिर भी, हल्के में लिया तो हैरानी न थी..
हम इश्क़ में बहुत वक्त, बेख्याली में ना रहे यारों..
उनमें वफ़ा ना थी, और हम में बदग़ुमानी न थी..।