दुनियां की शर्तों पर जी है जिंदगी हमने
गरीबी की खातिर बेची है जिंदगी हमने
बेहाल जिंदगी से जिन्दगी देखी है हमने
रोती मौत की खातिर देखी है जिन्दगी हमने
दुनियां में उम्र भर तरसते रहे है जिसकी
खातिर मय खाने में पाई है जिंदगी हमने
बेच रहे लम्हा लम्हा चाह में जीने की
कर्ज़ों की खातिर पाई है जिंदगी हमने
कहाँ बची है दरों दिवारों में इस घर की
दहलीज़ पर खड़ी देखी है जिंदगी हमने
जब मरना ही है हमें क्यों डरना मरने से
मरने के बाद ही पाई है जिंदगी हमने