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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

मानव की रामकहानी

युग युग से यह मानव की राम कहानी लगती है
सबको अपने आंगन की छांव सुहानी लगती है।।

पेड़ों की शाखो पे उड़ती नन्हीं मुन्नी चिड़िया भी
दादी मां की लोरी में परियों की रानी लगती हैं।।

सुबह सूरज की किरणें लेके आई दिन में सपने
पथरीली राहों पे थकके नींद सुहानी लगती है।।

जितने उजले होते चेहरे मन में लेकिन दाग हैं गहरे
रूप रंग दौलत की जादा भूख बादामी लगती हैं।।

जर्रा जर्रा चांद गला है सूरज पल पल खाक हुआ
दुनियां वालों को उनकी चाल पुरानी लगती है।।

अपनी किस्मत खंजर ताने ढूंढ रही है नए बहाने
आगे गहरी जो दलदल उसकी शैतानी लगती है।।

यौवन का जो दरपन बोले बातों में मिश्री सी घोले
उम्र हुई जो हावी इसपे सिर्फ निशानी लगती हैं।।

थोड़ी मदिरा रामबाण है अधिक जहर बन जाती है
अच्छाई भी हद से जादा एक नादानी लगती है।।

तितली बैठी फूलों पर और फूल खिले हैं शूलों पर
फूलों को जीने की खातिर देनी कुर्बानी पड़ती है।।

दास दर्द में अंचल गीले रोकर हंसकर मरकर जीले
खुद के जख्मों से खुदकी प्यास बुझानी पड़ती है II




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (9)

+

सुभाष कुमार यादव said

कमाल की रचना। 👌👌🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

शिवचरन सर जी, आपकी रचना की हर बंध दिल को रूहानी लगती है। क्या खूब लिखा है आपने, बधाई, तालियां, वाह वाह! ज़र्रा ज़र्रा चांद लगा है,सूरज पल पल खाक हुआ है। कड़क,तड़क,भड़क रचना जी। अभिनंदन।

शिवचरण दास replied

आपकी इनायत मनोज जी आभार

शिवचरण दास said

बहुत आभार सुभाष जी

शिवचरण दास said

आपकी इनायत है मनोज जी बहुत बहुत शुक्रिया

Ankush Gupta said

दास दर्द में अंचल गीले रोकर हंसकर मरकर जीले खुद के जख्मों से खुदकी प्यास बुझानी पड़ती है II bahut khoob

शिवचरण दास replied

आभार आपका

पवन कुमार "क्षितिज" said

बेहतरीन 👌

शिवचरण दास replied

शुक्रिया शुक्रिया

शिवचरण दास said

पवन जी बहुत शुक्रिया

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

दास दर्द में अंचल गीले रोकर हंसकर मरकर जीले खुद के जख्मों से खुदकी प्यास बुझानी पड़ती है, - वाह, गहरे अर्थों से भरी रचना है जो जीवन की सच्चाइयों को बड़े ही खूबसूरती से बयां करती है। हर शेर में जीवन की जटिलता, संघर्ष और इंसान की असली भावनाएं छुपी हैं। बहुत प्रभावशाली लिखा है, दिल को छू गया...अभिनंदन

शिवचरण दास replied

अशोक जी आभार अभिवादन

शिवचरण दास said

बहुत बहुत आभार अशोक जी

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