युग युग से यह मानव की राम कहानी लगती है
सबको अपने आंगन की छांव सुहानी लगती है।।
पेड़ों की शाखो पे उड़ती नन्हीं मुन्नी चिड़िया भी
दादी मां की लोरी में परियों की रानी लगती हैं।।
सुबह सूरज की किरणें लेके आई दिन में सपने
पथरीली राहों पे थकके नींद सुहानी लगती है।।
जितने उजले होते चेहरे मन में लेकिन दाग हैं गहरे
रूप रंग दौलत की जादा भूख बादामी लगती हैं।।
जर्रा जर्रा चांद गला है सूरज पल पल खाक हुआ
दुनियां वालों को उनकी चाल पुरानी लगती है।।
अपनी किस्मत खंजर ताने ढूंढ रही है नए बहाने
आगे गहरी जो दलदल उसकी शैतानी लगती है।।
यौवन का जो दरपन बोले बातों में मिश्री सी घोले
उम्र हुई जो हावी इसपे सिर्फ निशानी लगती हैं।।
थोड़ी मदिरा रामबाण है अधिक जहर बन जाती है
अच्छाई भी हद से जादा एक नादानी लगती है।।
तितली बैठी फूलों पर और फूल खिले हैं शूलों पर
फूलों को जीने की खातिर देनी कुर्बानी पड़ती है।।
दास दर्द में अंचल गीले रोकर हंसकर मरकर जीले
खुद के जख्मों से खुदकी प्यास बुझानी पड़ती है II

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




