"ग़ज़ल"
जब तुम मिरे हौसलों की उड़ान देखोगे!
आसमानों से ऊॅंचा इक आसमान देखोगे!!
अपने ज़मीर की ऑंखों को ज़हमत तो दो!
कितना ज़ुल्म सहते हैं बे-ज़बान देखोगे!!
ग़रीबों की बस्ती से गुज़रो तो कभी!
बुझे हुए चेहरे ऑंखें वीरान देखोगे!!
माॅल मल्टीप्लेक्स की चकाचौंध दुनिया में!
जिस को भी देखोगे परेशान देखोगे!!
'परवेज़' नेट का ज़माना है बस एक टच!
और घर बैठे सारा जहान देखोगे!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad