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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मरीज हमको दवाएँ बताने लग जाते हैं

मरीज हमको दवाएँ बताने लग जाते हैं,
हमारे ज़ख़्म पे फस्ले-भलाई उगाने लग जाते हैं।

हमारे दर्द को हल्के में ले लिया सबने,
अब आइनों में भी आईने समझाने लग जाते हैं।

हम अपनी मौत से मिलकर जो थोड़े मुस्कुरा दें,
तो लोग ज़िंदगी के फ़लसफ़े सुनाने लग जाते हैं।

हमारे ख्वाब भी अब खौफ खाने लगे हमसे,
जो नींद आए तो साए चुभाने लग जाते हैं।

जो हक़ में थे कभी, अब शक़ में रहने लगे हैं,
वो अपने हाँथ से रिश्ते मिटाने लग जाते हैं।

हमारी चुप्पियों को शौक समझते हैं लोग,
जो टूट जाएँ तो हमको मनाने लग जाते हैं।

हम अपने हाल में जब भी सँवरने लगते हैं,
तो दर्द फिर से हमें आज़माने लग जाते हैं।

हमें जो नींद न आए तो फ़िक्र सबको होती है,
हम अगर मर भी जाएँ — तो बहाने लग जाते हैं।

हमारी तन्हाइयों पे उन्हें रहम आता नहीं,
पर अकेले दिखें तो सवाल उठाने लग जाते हैं।

हम अपने दर्द से जब खेलना सीख लेते हैं,
तो लोग हमें मज़ाक में उड़ाने लग जाते हैं।

जिन्हें ख़ुद पे भरोसा नहीं — हमें राहें दिखाते हैं,
हमारे खौफ़ से बचकर, खुदा से जुड़ जाने लग जाते हैं।

हमारे आँसुओं से भी उन्हें एलर्जी हो गई,
अब मुस्कुराएँ तो शक में जलने लग जाते हैं।

हम जो टूटकर भी मुस्कराएँ — बुरा मानते हैं,
ये लोग हारते नहीं, बस हराने लग जाते हैं।

हम अपनी मौत को जब नाम देने लगते हैं,
वो ज़िंदा रहने की तरकीबें बताने लग जाते हैं।

बचपन से कहते आए — ‘सच बोलना सिखाया है,’
अब सच कहें तो हमें बेहया बताने लग जाते हैं।

कभी तो पूछ ले कोई — ‘तू ज़िंदा क्यों है अभी?’
कि हम भी खुल के कहीं मर जाने लग जाते हैं।







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