तेरी चाहत,
या हम परेशान है अपने ही बनाए हुए जाल से
तेरी अभिलाषा,
या हम दुःखी है अपने ही निर्मित अज्ञान से
हमें क्या चाहिए ?
भगवान या मुक्ति ?
हम भगवान को ढूंढ रहे है मन में ढेर सारी आकांक्षाए लिए
वह नहीं मिलेगा
आकांक्षा बाधा है
हम उस तत्व की खोज कर रहे है मन में ढेर सारी बेचैनियाँ लिए
वह नहीं मिलेगा
बेचैनी परदा है
हमें नग्न होना होगा
अपने विचारों से
अपनी मान्यताओं से
अपनी धारणाओं से
अपनी परंपरा, संस्कारो से
अपने समस्त पापों से
तब जो होगा
हे भगवंत...
तेरे सिवा और कौन होगा ?
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️