मन तो आखिर मन ही होता है
कभी तन्हाई में भी चुप-चाप रोता है,
तो कभी भीड़ में भी अकेला होता है।
जब मुस्कुरा दे, तब ही सवेरा होता है,
मन तो आखिर मन ही होता है।
खुश हो तो आसमान की ऊँचाइयाँ छूता है,
दुखी हो तो रोने को कोई कोना ढूँढता है।
सुख-दुख की हर संवेदना को झेलता है,
मन तो आखिर मन ही होता है।
जितना नाज़ुक है, उतना ही मज़बूत यह होता है,
हर दर्द सहकर भी कुछ न बोलता है।
उम्मीदों की नींव पर इसका जहाँ टिका होता है,
मन तो आखिर मन ही होता है।
शिल्पी चड्ढा