सर्द ठिठुरती रातों में
काँपते सिहरते बदन
ओढे कोहरे की चादर
सिकुङते, सिमटते बदन
रात की बेरुखी से जूझते
टूटते, मिटते बदन
बेपरवाही के मारे
मौत की ओर बढ़ते बदन
चित्रा बिष्ट
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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टूटते, मिटते बदन
बेपरवाही के मारे
मौत की ओर बढ़ते बदन
चित्रा बिष्ट