जिस दिन हमारी आँख फड़कने लगी।
याद किया होगा बखूबी समझने लगी।।
एक शाम दहलीज पर बैठकर गुजारी।
सड़क से बाते की रोशनी बुझने लगी।।
सोचा नही अच्छा बुरा कौन क्या जाने।
कुछ देर रुककर देखा धुन्ध दबने लगी।।
देर से आना था कम से कम फोन करते।
फोन नही आया सोचकर सुबकने लगी।।
शक का दायरा 'उपदेश' बढ़ता जा रहा।
कुछ खाए भी तो कैसे भूख मरने लगी।।
एहसास की खुशबू बंद दरवाजे से आई।
पहचान कर दरवाजे के तरफ बढ़ने लगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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