मैं हूँ किसान ...हाँ मैं हूँ इक किसान ...
किसान ऐसा जिसके खेत ना खलिहान
जीता हूँ प्रकृति को मैँ तो सुबह शाम
मैं हूँ किसान... हाँ मैं हूँ इक किसान...
किसान हूँ मैं लम्बरदारो के खेतों का,
हूँ किसान मैं मियाँ साहब के खेतों का
कहने को मैं अन्नदाता हूँ
पर अन्न नही हैं,मेरे घर में खाने को।
रहने को मैं खेतों में रहता हूँ
झोपड़ी है,पक्की छत नहीं सोने को।।
हर वक्त ही ज़िन्दगी में रहता हूँ परेशान...
मैं हूँ किसान ...हाँ मैं हूँ इक किसान ...
निर्धनता का जीवन जीता हूँ
मैं दिन रात।
अब तो ईश्वर भी सुनते नहीं
मेरी कोई बात।।
अभी अभी पिछले बरस ही
तो बड़की बिटिया का गवना
ज़मीदार से कर्जा लेकर किया था।
अब देखो छोटकी भी मुँह बाये हो गयी है
विवाह करने के लायक ज़रा।।
पुत्र मेरे खेती के कार्य में हाथ मेरा बिल्कुल भी बटाते नहीं।
वह रहते है जोरू के साथ शहर में अब तो घर भी आते नहीं।।
मिली है मुझको जीवन मे निर्धन की पहचान
मैं हूँ किसान ...हाँ मैं हूँ इक किसान ...
किसान हूँ मैं बदकिस्मती का,
किसान हूँ मैं कर्जे में विपत्ति का,
हाँ किसान हूँ मैं बिन खेत,खलिहान का।
बड़ी आशा के साथ इस बार की थी खेती पिपिरमिंट की ।
सारी पूजी कौड़ी लगा दी थी इसमें अपनी जिन्दगी की।।
किस्मत देखो मेरी पुनः विपत्ति लेकर आई थी।
पिपिरमिंट बरखा की बूदों के लिए तरसाई थी।।
पुरखों की वसीयत में कुछ भी ना रहा था।
उनकी पहचान को इकलौता मैं ही बचा था।
कैसे छोड़ू दूँ मैं अपने गांव को खाने कमाने के लिए।
जिसकी मिट्टी में मैं खेल, कूदकर बड़ा हुआ था।।
क्या कभी मेरी भी प्रथना सुनेगा भगवान
मैं हूँ किसान ...हाँ मैं हूँ इक किसान ...
कोई संपत्ति ना बची थी मुझ गरीब के पास।
तभी तो पुत्रों ने भी बना ली थी दूरी मेरे साथ।
अभी कल ही दीनू ने की थी आत्म हत्या,
उस पर लदा था मेरी ही तरह बैंक का कर्जा
भगवन अब हमे भी निकालो इस विपत्ति से।
कब बदलोगे मुझ दीन-हीन की जीवन दशा।।
पुरखों का गाँव तो छोड़कर मैं जाऊँगा नही।
किसान की पहचान खोकर मैं जियूँगा नहीं।
इस बार फसल अच्छी गयी है बरखा की तरह
बेचकर कर्ज मुक्त हो जाऊंगा इस दफा के धान
मैं हूूँ किसान ...हाँ मैं हूँ इक किसान ...
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




