मैं रो रही हूँ,
वो रो रहा है,
रोना हमारे सबब बन गए हैं,
काँटे बने सब चुभें हैं दिलों में,
ज़खम छातियों में ग़ज़ब बन गए हैं,
मैं रो रही हूँ, वो रो रहा है,
रोना हमारे सबब बन गए हैं..........................
हमने कभी प्यार सोचा नहीं था,
अचानक हुआ अब किया भी क्या जाए,
मेरी खुशबुओं में तबाह हो गया वो,
जमाने के पत्थर भी सीने पे खाए,
ज़खम भर न पाएं वो फिर खुल-खुल जाएं,
दवा के हकीम-ओ-नफीसा बुलाए,
मैं बेआबरू उसकी इज्जत लुटी है,
तड़पन के कीड़े बड़े बिलबिलाए,
दम साध रखी है जीने के खातिर,
ये बैरी इशक अब मझब बन गए हैं,
मैं रो रही हूँ,
वो रो रहा है,
रोना हमारे सबब बन गए हैं........................
मन्दिर का हर आसरा है खतम सा,
मसीतों से सब ने है बाहर निकाला,
हमें मिल रही बेमुरउव्वत की रोटी,
मुश्किल में है उसका हरइक निवाला,
खिड़की से जब-जब दिखे हाल उसका,
सब उसपे हँसते मेरे मूँ पे ताला,
क्या खूब अंतर है सबने उछाला,
मेरी जात गोरी वो है रंग काला,
सब लोग आ-आ के थू कर रहे हैं,
घावों में सुइयों से खूँ कर रहे हैं,
हैं आखों में चोटें नशा हो रहा है,
ज़खम सब शराब-ओ-शरब बन गए हैं,
मैं रो रही हूँ,
वो रो रहा है,
रोना हमारे सबब बन गए हैं.......................
मेरी शक्ल ख़त बन गई उसके खातिर,
असमान उसकी नई छत बनी है,
मुहल्ले की नाली में मूँ धो रहा है,
लगता है जैसे कि पनघट बनी है,
कुत्ते सब अगल-ओ-बगल ही खड़े हैं,
क्या खूब राजे की खिदमत बनी है,
जा सकता है वो अगर चाहे वापस,
मगर कैसे मेरी महक लत बनी है,
मेरी कदर उसकी अस्मत बनी है,
क्या खूब बन्दे की दुरगत बनी है,
वाह-वाह लबालब मजा आ रहा है,
जमाने तू दिखला दे और जुल्म कर के,
हारेंगें ना, लड़ के हारेंगें मर के,
हर इक नजर उसका खूँ दिख रहा है,
देखो मेरा दूल्हा है आया सँवर के,
नजर न लगे मेरे हमदम को मेरी,
अब और भी लाजवब बन गए हैं,
मैं रो रही हूँ,
वो रो रहा है,
रोना हमारे सबब बन गए हैं...........................
विजय वरसाल..............