महिला सशक्तिकरण और विधिक आयाम -एडवोकेट शिवानी जैन(Byss)
महिला सशक्तिकरण एक बहुआयामी अवधारणा है, जिसमें महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और कानूनी रूप से मजबूत बनाने की प्रक्रिया शामिल है। यह महिलाओं को अपने जीवन के सभी पहलुओं पर नियंत्रण रखने और अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाता है।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
प्राचीन काल से ही महिलाओं को समाज में दोयम दर्जे का दर्जा दिया जाता रहा है। उन्हें शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी से वंचित रखा गया था। समय के साथ महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है और कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं।
विधिक आयाम
भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कानूनी प्रावधान किए गए हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार हैं:
संविधान में समानता का अधिकार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं।
शिक्षा का अधिकार: शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है, जिसमें लड़कियों भी शामिल हैं।
दहेज निषेध अधिनियम: दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत दहेज लेना और देना दोनों ही गैरकानूनी हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम: घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान की गई है।
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 के तहत महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान की गई है।
चुनौतियां
कानूनी प्रावधानों के बावजूद, महिलाओं को सशक्त बनाने में कई चुनौतियां हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां इस प्रकार हैं:
सामाजिक मानसिकता: समाज में महिलाओं के प्रति नकारात्मक मानसिकता अभी भी व्याप्त है।
शिक्षा की कमी: कई महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं, जिसके कारण वे अपने अधिकारों के बारे में जागरूक नहीं हैं।
आर्थिक निर्भरता: कई महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं, जिसके कारण वे अपने फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं।
कानूनी जागरूकता की कमी: कई महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है।
समाधान
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित समाधानों पर विचार किया जा सकता है:
सामाजिक मानसिकता में बदलाव: समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक मानसिकता को बढ़ावा देना।
शिक्षा को बढ़ावा देना: महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना।
आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना: महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए उपाय करना।
कानूनी जागरूकता को बढ़ावा देना: महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक करना।
निष्कर्ष,महिला सशक्तिकरण एक सतत प्रक्रिया है। सरकार, समाज और महिलाओं को स्वयं मिलकर इस दिशा में प्रयास करने होंगे।