लोग कहते हैं वक़्त हर ज़ख़्म भर देता है
तजुर्बा है मेरा बेवक़्त हरा भी कर देता है
आते हैं दिन बहार के रंगीन नज़ारे देख
कोई किसी की याद में दिल अपना जला लेता है
साथ न हो साथी और चांँदनी मुस्कुराए
छिप जाए चाँद काले बादल में आशिक़ बद्दुआ देता है
हिज्र में आकर बरसात अगन हीं लगाती है
फिर कौन सा वक़्त है जो ज़ख़्म भर देता है