रोशनी लेकर निरन्तर यहां घूम रही है
ये जुगनुओं की फौज किसे ढूंढ रही है
शायद तलाश होगी सूरज की इन्हें भी
पेड़ पौधों से किस का पता पूछ रही है
जिद पे अड़ा हुआ मौसम का सिपाही
ऊपर आज ये नदी भी यहां रूठ रही है
अब दास जुगनूओं ने किया है ये खेला
सांस अँधेरे की कुछ तो यहाँ घुट रही है
नींद में गाफिल परिंदे पर फड़फड़ाते हैं
नींद उनकी कच्ची अभी और टूट रही है••