कविता - मैं शराबी ....
एक घर सुन्दर अच्छा संसार था
मेरी बिबी बच्चे छाेटा परिवार था
मगर मैंशराबी पीता राेज शराब
नियत भी थी मेरी बहुत खराब
पीता रहता बा स वही सुबह से शाम
नहीं करता नाेकरी नहीं करता काम
बाेलता मैं फिर बड बडाते हुए
अाधी रात घर अाता लड़खड़ाते हुए
देता फिर बिबी काे मैं बहुत गाली
दरबाजा खाेल अाेहे कलाैटी काली
वह बेचारी कुछ भी नहीं बाेलती
चुप-चाप रह कर दरवाजा खाेलती
उसके बाद उसकाे काफी देर कूटता
फिर मैं साे कर देर से उठता
ये देख बिबी मेरी हर पल राेती
मेरे कारण दुखी बहुत हाेती
सभी लाेग मुझसे बडी तंग हाेते
कभी कभी ताे फिर बच्चे भी राेते
सुख अाैर शांति थी नहीं घर में
रहता परिवार सिर्फ मेरे डर में
शराब की लत मुझे बहुत ही चढ़ गया
ऐसा करते करते कर्जा भी बढ़ गया
उल्लू का पट्ठा मैं हराम खाेर साला
एक दिन अच्छा -खासा घर भी बेच डाला
मैंने घर बेच कर काफी पैसा लिया
जिस से कर्जा लिया था उसी काे दिया
मैं शराबी से वेह धाेखा खा गए
बिबी बाल-बच्चे मेरे...सडक में अा गए
उन सब का दिल यूं ही तोड़ कर
मैंचला ठेके पर उनकाे वहीं छोड़ कर
तीन चार दिन तक पी कर टल्ली हाे गया
बच्चाें के पास भी न अाया वहीं पर साे गया
जब नशा छूटा तब हाेश अाई
मैं बाेला मेरे काे चल मेरे भाइ
उन्हें जहाँ छाेडा था फिर वहीं अाया
बिबी अाैर बच्चाें काे मैंने नहीं पाया
कभी इ स पार कभी उस पार
ढूंढा उनकाे मैंने सारा संसार
काफी साल बित गए काेई पता चला नहीं
मेरा परिवार देखाे मुझे मिला नहीं
अाज मेरे पास में नहीं रुपये पैसे
ये दुखी जीवन काटूं अब कैसे
सायद शराब से ही छाती दर्द हाे रहा
ये देख मैं अाज सुबक सुबक राे रहा
ये देख मैं अाज सुबक सुबक राे रहा.......