अकेलेपन का साथी हमने ढूंढ लिया,
अवसाद बनी ज़िंदगी में भी कुछ रंग भर दिया,
कुछ पढाई भी समझ में आने लगी,
कुछ लिखने की रोज हमने ठान ली,
अकेलेपन की सोच को पारभासी बना लिया,
नकारात्मक पहलू से अपने को दरकिनार कर लिया,
अंकुरित प्रेम सवरने लगे,
अब अंधेरे में भी 'जी' लगने लगा,
अब दिल की संगीत भी झंकार में तब्दिल होने लगी,
अकेलेपन का साथी......
संजय श्रीवास्तव