नदी जब खुद किनारे लाँघ कर बह जाती है
उसे अपनी ना ज़माने की फ़िक्र रह जाती है
जब भी हमारे घर आता है कोई मेहमान तब
माँ हर रोज कुछ नया एक पकवान बनाती है
पेड़ पर बैठे परिंदे शोर करते हैं बहुत ज्यादा
इनकी गुफ़्तगू शायद नई खिचड़ी पकाती है
दूर कहीं आसमान में बादल पड़ते हैं दिखाई
फिर शीतल हवा जैसे ये पंखा सा झुलाती है
दास दर्द की हमको कुछ भी तो परवाह नहीं
नन्ही बहन प्रेम से मेरा माथा जो सहलाती है|

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




