नीलाभ-अम्बर में चारु चन्द्र-चाँदनी चमके,
हिय-गुल हिलोरें लेत दिव्य- देह दामन में।
रत्नाकर- नीर बीच रतन-मीन मोती भटके,
अली कली मध्य फड़कै उद्यान-उपवन में।
दुरस्त देह दर्पण में कामिनी कौमार्य खोजे,
कुरंग खोजे कस्तूरी करील कुंज कानन में।
विन्ध्य मेरु-तुंग बीच साधु खोजे ईशन को,
सुमिल खोजे समृद्धि कांता किला कंचन में।।
[क्रांति स्नेही]