सूरज ढलता, शहर थमता है,
पर इनकी कलम न रुकती है।
हर कोने की ख़बर जुटा लाते,
सच की मशाल ये जलाते।
भय न भूख, न कोई लालच,
बस जनता की आँख बन जाते।
भीड़ में रहते, खुद गुमनाम,
हर सच्चाई को स्वर दे जाते।
कभी तूफानों में भीगते हैं,
कभी गोलियों से टकराते हैं।
सच का साथ न छोड़ें ये,
हर रात खबरों को जिलाते हैं।
जो देखा वो ही कहते हैं,
जो छिपा हो, वो भी लाते हैं।
वो कैमरे, कलम, और आवाज़,
जिनसे लोकतंत्र सांस पाते हैं।
तो आज की ये शाम समर्पित हो,
उन शब्दों के पहरेदारों को।
जो जाँचते, जागते, जला देते हैं,
अंधेरों में भी उजाले भर जाते हैं।
सलाम पत्रकारों को!
जिनकी वजह से हम जान पाते हैं – सच्चाई।