अंगारों सी बरसात
प्रकृति कुछ रूठी सी क्यों लगती है ?
सावन इस बार
बारिश नहीं,
अंगारों की बरसात लेकर आया है
परिंदे तक भी बच नहीं सके,
बहते पानी में हर तरफ़ हर कोई
बहता नज़र आ रहा है।
पहाड़ों ने भी इस बार
बरसात का खूब साथ निभाया,
बचने का इस बार कोई बहाना दिया नहीं
उनकी ऊँचाई से हमारा अहम्
आज टूटता नज़र आ रहा है।
क्यों रूठ गई है प्रकृति हमसे ?
जानते हैं हम
पर समझते नहीं।
मानते भी हैं,
पर सुधरते नहीं।
हमारी ना खत्म होने वाली चाहतों ने
प्रकृति के अहम् को इस कदर छेड़ दिया
कि अब वो लौटकर
अपने अस्तित्व का हिसाब ले रही है।
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है