वो बनकर भोले
मेरे दिल को
टटोल लेते हैं।
कर देते हैं क़त्ल
आंखों से ,पर
जुबां से कुछ ना
बोलतें हैं।
हस्र क्या होगी
ऐस मुलाक़ातों की
वो मिलकर भी
ना क़रीब होतें हैं
सिर्फ लबों पे उनके
नाम मेरा
पर दिल से जुदा
जुदा से होतें हैं।
हम तो बस इतना
इनायते करम चाहतें हैं
नज़र हम पे भी उनकी
पर दिल से..
बस इतनी मेहर चाहतें हैं।
ऐसे रूखे सूखे मोहब्बतों से
मज़ा नहीं आता।
हम तो बस एक मखमली
एहसास चाहतें हैं
ऊपरी प्रेम नहीं
अपितु दिल से प्यार चाहतें हैं
हम दिल से प्यार चाहतें हैं....

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




