कविता - बचपन,जवानी और बुढ़ापा
बचपन हर कोई
इंसान को भाता है
बचपन तो दोस्तों से
हंस खेल में ही जाता है
बचपन में चाहे घूमों इधर
चाहे घूमों उधर
उस बखत तो न कोई
चिंता न फिकर
इसी तरह जवानी भी
सब के लिए सही है
कोई परेशानी
कोई दिक्कत नहीं है
बिजनेस करो नोकरी
करो पैसा कमाओ
ऐश करो इधर जाओ
कभी उधर जाओ
ऐसे करते करते जवानी भी
मजे से कट जाता है
दिक्कत तो तब आती
जब बुढ़ापा आता है
बुढ़ापे में तो आंखें
देखते नहीं
दोनों पैर ढंग से चल
फिर सकते नहीं
कुछ भी कहीं भी
अच्छा लगता नहीं
खाना खाओ तो
पेट में पचता नहीं
घर का परिवार भी
देखता नहीं
कोई यार दोस्त भी
पास आता नहीं
बुढ़ापा सभी के लिए
कष्ट कर होता है
कष्ट कर क्या बुढ़ापे में तो
हर कोई रोता है
कष्ट कर क्या बुढ़ापे में तो
हर कोई रोता है.......