कैसे उतारेंगे, पसीने का कर्ज हम
इतनी दिहाड़ी,न जाया करो बापू
शादी का कर्ज, पढ़ाई का कर्ज
कर्जों का बोझ,न उठाया करो बापू
माना तुम्हारी, सीने है पत्थर का
सहनशीलता इतनी, न दिखाया करो बापू
सुखी आंखों में, आंसुओं का समंदर है
तड़प इतनी दिल में,न सजाया करो बापू
तन भी थक जाए और मन भी थक जाए तो
मुझे बांह झूले में, झूलाया करो बापू।
सर्वाधिकार अधीन है