तेरे बिना भी साँसें चलती हैं,
और काफ़ी ठीक चलती हैं — क्या होगा?
जिसने तुझमें खुद को बाँधा था,
अब खुद में लौटे — क्या होगा?
तू जिस “कदर” पे इतराता था,
अब वही रद्दी में बिक जाए — क्या होगा?
जो तुझसे सवाल करती थी,
अब ख़ुद जवाब हो जाए — क्या होगा?
जिसके होने को तू नकारता था,
वही तुझसे बड़ा हो जाए — क्या होगा?
मैं टूट के भी ना टूटी थी,
अब जुड़ के भी न मिलूं — क्या होगा?
अब तेरे इश्क़ की हर याद को
मैं धूप में सुखाऊँ — क्या होगा?
अब तू भी पूछेगा — “कहाँ गई वो?”
और जवाब आएगा —
“अब वो अपनी हो गई है!”
अब तेरा नाम भी चुभता है,
और तू ख़ुद को क्या समझे — क्या होगा?
तू सोचे कि मैं फिर लौटूँगी,
मैं फिर भी न लौटूँ — क्या होगा?
तेरी हर बात पे जो चुप थी,
अब वो लफ़्ज़ बन जाए — क्या होगा?
जिस मौन में तू जीत रहा था,
वो चुप्पी अब बोले — क्या होगा?
जो रूह तूने थाम न पाई,
वो अब परवाज़ करे — क्या होगा?
अब जिस साये को तू ठुकराए,
वो तेरे ही साथ चले — क्या होगा?
जिस एक नज़र को तरस गया तू,
अब वो नज़र भी झुके न — क्या होगा?
अब ‘शारदा’ को किसी का होना नहीं खलता,
जिसने छोड़ा, वो भी अब रुक-रुक कर जलता।