नाजुक सा था वो पल
अंकित हो गया
रेशम के धागों में
खाव्ब-ए-भरम दे गया
टुटा जो धागा तो
टुकड़ो में बिखर गया
समेटे कैसे उसे
नजर-ए-कर्म धोखा दे गया
समय ने वक़्त से कहाँ
क्षण के शृंगार लूंट गया
युगो की यारी छुड़ा गया
मायूसी-ए-मौसम दे गया
जीवन तो बित रहा
हर घड़ी सिख दे गया
आना और जाना चकरा गया
अतुल्य है ए, बस जीना सीखा गया