छेड़ कोई तराना गमगीन है मन आज।
निकल पड़े फिर वही यादों की बारात।
कोंपले फूट पड़े सजीव पेड़ों की डाल।
फिर सावन आ जाए झूमके एक बार।
कारवाँ गुजरा है मिट जाए वे निशान।
फिर लिखे मिलके एक नया इतिहास।
जहां नियति ने बना रखा आशियाना।
और उसमें बस जाए खुशियां अपार।
जमाने की खुशियां चूम ले तेरे कदम।
मुड़ मुड़ कर क्या देखे दिल के गुबार।
करती जा झंकृत मेरे मन का हर तार।
फिर आ जाए इन फिज़ाओं में बहार।
तुम और मैं एक, और एक हो संसार।
न कोई और हो न एक से दो हुए हम।
नील गगन में कल्पना की भरे उड़ान।
हकीकत को भुला कर बुन ले ख्वाब।