दाेस्त परिवार सब किनारे लग चुके
शिर के बाल भी सब मेरे पक चुके
आँख भी ढंग से देखता नहीं
इधर-उधर भी चल फिर सकता नहीं
जाेश और जांगर ने मूंह फेर लिया
कमजाेरी और बुढापा ने घेर लिया
आज मैं आदमी न विषेश न खास हूं
मैं ताे जि कर भी एक लाश हूं
मैं ताे जि कर भी एक लाश हूं.......
----नेत्र प्रसाद गौतम