लहज़े में हो तहज़ीब ये ज़रूरी है,
मगर हद से ज़्यादा किसी की क़दर न किया करो,
बहुत ज़ख्मी है ये दुनिया, यहां दिल के बदले दर्देदिल न लिया करो,
सुना है मिलते हो हज़ारों से हर दफ़ा,
कभी फुर्सत मिले तो ख़ुद से भी मिल लिया करो..!
-कमलकांत घिरी ✍️
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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मगर हद से ज़्यादा किसी की क़दर न किया करो,
बहुत ज़ख्मी है ये दुनिया, यहां दिल के बदले दर्देदिल न लिया करो,
सुना है मिलते हो हज़ारों से हर दफ़ा,
कभी फुर्सत मिले तो ख़ुद से भी मिल लिया करो..!
-कमलकांत घिरी ✍️