सच भी कड़वा लगता है
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
यह कैसी दुनिया है, जहाँ सच भी कड़वा लगता है,
और दूसरों की बुराई में, हर कोई रस भरता है।
अपनी गलतियाँ ढकने को, सौ बहाने गढ़ते हैं सब,
पर दूजों की छोटी सी चूक पर, उँगली उठाते हैं बेढब।
खामोशी को कमजोरी समझ, सहने की आदत डलवाते हैं,
और जब ज़ुबान खुले सच कहने को, तो दुश्मन बन जाते हैं।
यह दोहरा चरित्र है जग का, जो पल-पल रंग बदलता है,
अपनी ही बनाई रीत में इंसान, क्यों इतना फिसलता है?
तो क्यों न सच को सच कहें हम, चाहे कोई बुरा माने,
और बुराई को बुरा ही जानें, चाहे कोई सच माने।
खामोशी तोड़ो जब अन्याय हो, सच्चाई का दामन थामो,
अच्छाई की राह पर चलो निडर, दुनिया बदले न बदले, तुम बदलो।