हूँ कुदाल मैं
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।
मेरे अन्दर बहुमुखी प्रतिभा,कृषकों का हथियार हूँ।।
लोहे की चपटी फलक में,लम्बा बेंट लगा होता है।
लोहा लकड़ी के मिलने से,मेरा यह शरीर बनता है।।
कृषि कार्य करने को जन्मा, कृषकों का कुदार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
अलग अलग नाम रूपों से,जग में जाना जाता हूँ।
बोना और काटना दोनों ही,केवल मैं कर पाता हूँ।।
हर दुविधा में साथ खडा हूँ, मैं बहुत होशियार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।2
गर छोटा सा काम कहीं है, तो मुझको आजमालो।
तैयार नहीं हैं हल और बैल तो, कंधे मुझे उठालो।।
हल भी जहाँ पहुँच न पाता, वहां पहुँच तैयार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
मिटटी खोदो, गड्ढा भरलो, खर पतवार हटालो।
मेड़ लगालो खेतों में या, चाहो तो मेड़ मिटालो।।
वृक्षारोपण करना चाहो तो, न करता इनकार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
आपस के झगडे में तो मैं, सबसे पहले उठता हूँ।
तलवारों से ज्यादा घातक, घाव शत्रु को देता हूँ।।
विजयी वही हाथों में जिसके मैं, पक्का पहरेदार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
इंच इंच कर खेत बढ़ाता, झगडे सदा कराता हूँ।
चार इंच की खातिर भी मैं, भाई से लड़वाता हूँ।।
खेत में झगडे का दोषी मैं, निर्विवाद विकार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
रक्षा करने तत्पर रहता,मुझे किसी से बैर नहीं।
अगर कहीं हो सांप बिच्छु,तो उसका भी खैर नहीं।।
घास उगे हों,गटर हो गंदा, सफाई को तैयार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
दोष और गुण दोनों मुझमें, चाहे जो अपनालो।
चाहे अन्न उगालो मुझसे, या फिर रक्त बहालो।।
मैं तो तेरा दास सदा हूँ, करता तुमसे प्यार हूँ।
हूँ कुदाल मैं, बड़ा निराला, खेती का औजार हूँ।।
-उमेश यादव