आजकल कवि दुखी है ,
जीवन कट रहा कहां सुखी है,
क्योंकि केवल बात बोलने से कुछ ना होगा ,
कोई मुझे पड़ेगा ही नहीं तो कहां नया सवेरा होगा,
सुनो अब वाणी को विराम दूंगा
थोड़े दिन आराम लूंगा,
अब नहीं लिखूंगा मेरी बात समक्ष आपके,
जल जाऊंगा जाकर अग्नि के ताप में,
भाव भरे हृदय को कविता बनाकर कहता हूं,
अलंकार की संख्या बनाकर चेंन की नींद सोता हूं,
बात पहुंचे पास आपके पल-पल में रोता हूं ,
रात्रि में एक पल एक क्षण ना में सोता हूं
अब तो पथिक पथ का मार्ग बदले गा,
लिखना बंद कर हिमालय को चढ़ लेगा,
कोई धन कागज जमीन तो मांगी नहीं,
कोई बुरा लिखा नहीं ऐसी मेरी झांकी नहीं
अशोक सुथार