सुननी है आपकी
पांवों की आहट
धड़कनों से
इसलिए, दिल पर
हाथ लगाए बैठे हैं
निहारते रहते हैं,
रास्ते को
अंतिम छोर तक
इसलिए, यूं ही
आंखें बिछाए बैठे हैं
देहरी खुला है
घर का
और मन का भी
इसलिए, फूल आशाओं के
सजाए बैठे हैं
आ जाओ ना कहीं
पलकें
झुकने से पहले
इसलिए,हम
पलकें उठाए बैठे हैं।
सर्वाधिकार अधीन है