तुम्हारी आँखों में जो कशिश मैंने देखी क्या वो झूठ था ?
उसमें बसी थी तस्वीर भी मेरी क्या वो झूठ था ?
सुना था तुम्हारा कोई वास्ता नहीं बेवफ़ाई से
फिर मुझपर जो क़हर बरपा क्या वो झूठ था ?
चलो नहीं करती हिसाब मैं अपनी वफ़ा का
पर तुम्हें झींझोडा़ था तुम्हारा ज़मीर क्या वो झूठ था ?
नहीं, ये सब सच, तुम्हें पता था, जो मुझे पता था
अब तुम्हीं कहो जो मुझे पता था क्या वो झूठ था ?