एक मशाल शहीदों की
एक निर्भया की भी जला देना,
धरती माँ के आंगन की
शोभा तुम बढ़ा देना।
राखी,दूज,तीज मन्नतें
सारे हथियार अपना लिए,
खुद की हिफ़ाज़त छोड़
अपनी उम्र भी क़ुर्बान किए।
ऐ ज़मीन तेरी गुनाह की
ये कोई सजा लग रही,
सदियों से औरतें
अब भी यहाँ सिसक रही।