बादलो को कहाँ हर रोज इतराना है।
सूरज को हर हाल में निकल आना है।।
मुश्किलों का दौर कुछ पल का नही।
ठोकरें खा कर फिर सम्भल जाना है।।
ख्वाहिशें समेट कर रखना छोड़ दिया।
अरमान मरते नही उन्हें मचल जाना है।।
नफरत को बर्फ की तरह मत ज़माओ।
मोहब्बत में उसको भी पिघल जाना है।।
भरोसा करके देख लिया तेरा 'उपदेश'।
ना जाने कौन सी शाम ढल जाना है।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद