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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

क्या होती है यह विधवा?,,, ताज मोहम्मद

क्या होती है यह विधवा?,,,
यह विधवा क्या होती हैं!!!
बिना किसी बुरे कर्म के,,,
उपहासित जीवन जीती है!!!

पति के मृत्यु पर पत्नी का,,,
क्या दोष होता है!!!
एक जीवन के जानें पर,,,
दूसरे को क्यों उपेक्षित होना पड़ता है!!!

कोई कैसे यूं घुट घुट कर,,,
जीता होगा!!!
सोचना कभी तुमको भी,,,
इसका एहसास होगा!!!

अपनी प्रत्येक इच्छा, सारे स्वप्न,,,
मार कर जीती है!!!
बिना कारण ही उसकी आंखे,,,
नीर बहाती है!!!

चूड़ी,कंगन,रगीन वस्त्र,आभूषण,,,
विधवा कुछ पहन सकती नहीं है!!!
किसी मंगलमय बेला में,,,
वह सुभारंभ कर सकती नहीं है!!!

औरत विधवा हों सकती है,,,
कर अपशगुनी नही होती है!!!
पर क्या करे इस समाज का,,,
जो ये बात उसकी समझ में ना होती है!!!

क्या उसका मन,,,
यह सब ना करने को करता है!!!
प्रत्येक चीज़ को त्याग कर,,,
ऐसा जीवन जिए ये कैसी प्रथा हैं?!!!

अर्थांगिनी होती है वह अपने पति की,,,
पति परमेश्वर,पत्नी का होता है!!!
पति जीवित होने पर,,,
उसका सम्मान देवी सा होता हैं!!!

अभी दो वर्ष पूर्व ही,,,
वह ब्याह कर आई थीं!!!
बड़ी प्रसन्न रहती थी,,,
ससुराल ही ऐसी पाई थीं!!!

पहली होली में उसने,,,
सबको होली खूब खिलाई थी!!!
सबका कहना था बहु नही,,,
यह खुशियों की देवी घर आई है!!!
इतनी खुशीयों भरी होली,,,
कभी ना इस घर ने मनाई है!!!

अभी छ: माह पूर्व ही,,,
पति कि असमय मृत्यु ईश्वर ने जानें क्यों दे दी थी।
उसके जीवन की सारी खुशियां,,,
ईश्वर ने जानें क्यों लें ली थी!!!

तभी से उसके मुख पर,,,
मैंने कभी हंसी ना देखी है!!!
इतनी चंचल हंसमुख लड़की,,,
देखा गुमसुम सी खड़ी थी!!!

हे ईश्वर,,,
यह किसने प्रथा बनाई थीं!!!
क्या उसके ह्रदय में तूने,,,
बिल्कुल भी दया ना डाली थी!!!

हे ईश्वर यह तो न्याय ना हुआ,,,
किसी के जीवन के साथ भी है!!!
फिर भी तेरी पूजा अर्चना,,,
करती वह आज भी है!!!

कल होली है,,,
सभी मगन है अपनें अपने में!!!
उसको देखा झूठी खुशी मुख पर लेकर,,,
सफेद साड़ी में खड़ी थीं घर के कोने मे!!!

हे ईश्वर,,,
यह कैसी तेरी लीला है?!!!
पिछली होली ऐसी खेली थी,,,
इस बार उसका जीवन बिन रंगों का हैं!!!

हमसे तो उसका यह दुःख,,,
ना देखा जाता हैं!!!
हे मानव बदल दो इस प्रथा को,,,
बड़ा ही दुखी जीवन जीती विधवा है!!!

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut achhey vishay par bahut khubsoorati se likha hai aapne aaj bhi prathayein jeewant hain is samaaj ke palan poshan ki vajah se un prathaon par karara vyang hai aapki rachna aur seekhne ke liye abhi bhi kuch nahi bigda..bahut khoob Taj sahab

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया भाई जी इस महत्वपूर्ण समीक्षा के लिए।

Arpita pandey said

Bahut khoob

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया

Ankush Gupta said

Bahut achha bahut hi badiya

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया।

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