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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

नूर के धागे - सुप्रिया साहू

नूर के धागे

वो नूर के धागे तोड़ ला घूंघट सजा रहा है मेरा
आगोश में सांसों से सांसों को उलझा रहा है मेरा...।।

- सुप्रिया साहू




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (11)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ हैं! - सादर प्रणाम आदरणीय

Supriya sahu replied

शुक्रिया सर 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Updesh Kumar Shakyawar said

वाह...ऐसे ही लिखती रहो बहुत खूब

Supriya sahu replied

शुक्रिया सर 🥰😊, बस आपका आशीर्वाद बना रहे,लिखते जाऊंगी अब, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

पवन कुमार "क्षितिज" said

बहुत उम्दा 👌

Supriya sahu replied

धन्यवाद सर 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर आपको सादर प्रणाम 🙏🙏

Supriya sahu replied

बहुत बहुत शुक्रिया मैम 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Amit Shrivastav said

बहुत सुन्दर नूर के धागे

Supriya sahu replied

धन्यवाद अमित सर 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

रीना कुमारी प्रजापत said

Very nice 👌

Supriya sahu replied

Thank you didu jaan 🥰😊🙏.

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह वाह क्या बात है। कुर्सी से उछलकर बजाने वाली तालियां तालियां। संयोग श्रृंगार की लहराती हुई कविता।दो ही पंक्ति में लंबी दास्तान। खूबसूरत खूबसूरत खूबसूरत।

Supriya sahu replied

बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद मनोज सर 🥰😊, मगर आप कुर्सी से मत उछलिये चोट लग जाएगी आपको अपना ख्याल रखिए, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

डाॅ पल्लवी "गुंजन" said

बहुत खूब!!

Supriya sahu replied

शुक्रिया मैम 🥰😊, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

Vineet Garg said

बेहतरीन प्रस्तुति 👏👏

फ़िज़ा said

Sundar Rachna

देवांशी पटेल said

वो नूर के धागे तोड़ ला घूंघट सजा रहा है मेरा - वाह बहुत सुन्दर प्रेम रास से परिपूर्ण

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