कविताओं में छुपे नुस्खे
दिखाते राह जन्नत की।
बचाया घर उजड़ने से
खुदाई ने पूरी मन्नत की।
कविताएँ ओढ़े बैठी है
जाने कितनी उदासियाँ।
वो जानती है पकड़ना
तरह-तरह की मछलियाँ।
ख्वाब में ही सही 'उपदेश'
मिलने आती तितलियाँ।
कभी मन से इतराते तन से
बादलो में देखती झांकियाँ।
बनकर मरहम लिख जाती
दर्द-ए-दिल की उर्मियाँ।
कोई कोई समझ पाता
भेजो चाहे जितनी प्रतियाँ।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद