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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

क्या बदला कुछ भी तो नहीं..

लो जी आ गया नया साल
तो क्या बदल मेरे यार
सिर्फ घरों के कैलेंडर
सिर्फ एक दिन वाला
नया साल...
फिर वही बवाल
सामने पड़े वही ढेरों सवाल
कुछ भी तो नहीं बदला
फिर वही सड़कें
फिर वही हादसे
वही भ्रष्टाचार
वहीं बात व्यवहार
झूठें वादों की भरमार
स्कूल कॉलेज अस्पतालों
का खस्ताहाल..
फिर वही बात बात पर
बवाल, निरुत्तर ढेरों सवाल
क्या नया हो जायेगा
साल दर साल फिर वही बात
क्या सब अपनी जीएदरियों को
समझने लगेंगे
अपने जवाबदेही से पीछे नहीं हटेंगे
जात पात ऊंच नीच धर्म अधर्म
पर आपस में नहीं लड़ेंगें ?
क्या सरकारी प्राइवेट तंत्र सही तरीकों से
काम करेंगे
क्या हम अपनी बहु बेटियों को पूर्ण सुरक्षा
महसूस करा पाएंगे..
जमाखोरी दुष्प्रचार महंगाई से देश को
आजादी दिला पाएंगे
क्या हम सब भारतवासी आपस में मिल जुल कर रह पाएंगे ?
क्या सभी को भरपेट भोजन दे पाएंगें..
किसानों को मजदूरों को उनकी मेहनताना
से पाएंगे..
शोषितों वंचितों हाशिए पर बैठे लोगों को
मुख्यधारा से जोड़ पाएंगे.
सबके लिए न्याय कर पाएंगे ?
क्या हम अपनी गुस्से पर काबू कर पाएंगे ?
क्या हम कल से रोड रेज नहीं करेंगे
किसी को अपनी कर से नही रौंदेंगे
क्या चोरी ड़कैती छीन छीनैती
घाल घमेल नहीं होगी ?
मन से लोगों की दंभ झूठ फरेब
मिट जायेंगें ...
दिल दिल से मिलकर खिल जाएंगे ?
सबके लिए शिक्षा न्याय तरक्की
के नए आयाम मिलेंगे ?
अगर हां तो आप हैप्पी न्यू ईयर सेलिब्रेट
कर सकतें हैं...
अगर ना तो भी .....
पर सोचिएगा ज़रूर..
क्या वाकई कुछ नया हुआ है क्या
क्या वाकई आपकी जिंदगी बदली है क्या
क्या वाकई कुछ नया हुआ है क्या
चाहे साल हो या साल के पल...
सोचिएगा ज़रूर....




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

वन्दना सूद said

बहुत ही सही लिखा आपने 👌👌👏👏अच्छा मुद्दा उठाया जो कोई सोचता ही नहीं क्योंकि सब अपने बारे में ही सोचते हैं

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